महाराष्ट्र जैन वार्ता : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : छोटे से जीवन में परोपकार के कार्य करके मानवता को सफल बनाना चाहिए, ऐसा प्रतिपादन पंडित राजरक्षितविजय इन्होने किया।
श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय वाई में जैनसंध में पंन्यास राजरक्षितविजय, पंन्यासन नयरक्षितविजय आदि का प्रवेश हुआ। पंडित राजरक्षितविजय ने कहा, जो लोग शत्रुता रखते हैं वे उग्र हो जाते हैं।
जो शत्रुता मिटा देता है वह शक्तिशाली हो जाता है। दुश्मनी जहर से भी ज्यादा खतरनाक होती है। विष भौंहें सिकोड़ता है। शत्रुता समृद्धि को नष्ट कर देती है।
मानव जीवन में सफल होने के लिए मनुष्य को सभी प्राणियों के प्रति मैत्री, पुण्यात्माओं के प्रति आनंद, पापी प्राणियों के प्रति संयम और पीड़ित प्राणियों के प्रति करुणा का भाव विकसित करना चाहिए।
सभी दोस्त होना अच्छी बात है लेकिन एक भी दुश्मन नहीं। धरती पर हमारे आगमन की जानकारी परिवार को नौ महीने पहले ही हो गई थी। लेकिन हम अगले नौ सेकंड ससे पहले खुद को जान लेंगे, है ना? प्रारंभिक जीवन में परोपकार के कार्य करके मानवता को सार्थक बनाना चाहिए।
पैसा और प्यार दोनों में प्यार को सबसे ज्यादा महत्व दें। पैसे ने दोस्तों को दुश्मन बना दिया है। जब प्यार से दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं। प्रेम का दायरा संसार तक फैलाना है। लेकिन इसे घर से शुरू करना होगा।
जिस परिवार में प्रेम होता है, वहां भगवान का वास होता है। नियमित-प्रतिक्रमण और पूजा आदि धार्मिक क्रियाकलाप तभी सफल और सार्थक होते हैं जब परिवार में संप हो। रात्रिकालीन व्याख्यान में पंन्यास नयरक्षितविजय ने युवाओं को सुन्दर ढंग से प्रेरित किया।
