विहारयात्रा में बड़ी संख्यामें भोर के युवा भी शामिल
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : हमारे भारत देश में “मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव” के नारे हमारे घरों में गूंजते थे। लेकिन मैकोले शिक्षा पद्धति के प्रसार, पश्चिमी जीवन शैली के आकर्षण से मनुष्य स्वार्थी- कृतघ्नी और एकलपेटा हो गया है। पत्नी पसंद से मिल सकती है लेकिन माता-पिता पुण्य से ही मिलते हैं। हमें माता पिता का आदर करना चाहिए ऐसा विचार पंन्यास राजरक्षितविजयजीने भोर शहर में आयोजित कार्यक्रम में रखा।
श्री शांतिनाथ जिनालय भोर जैन संघ में पंन्यास राजरक्षितविजयजी, पंन्यास नयरक्षितविजयजी आदि का आगमन भोरमें हुआ तो भाई-बहनों ने हर्षोल्लास के साथ उनका स्वागत किया। बहनों ने मंगल कलश के साथ तीन परिक्रमा की। विहारयात्रा में बड़ी संख्या में भोर के युवा भी शामिल हुए।
पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि प्रभु महावीर स्वामी की प्रथम देशना अल्पकालीन और अन्तिम देशना दीर्घकालीन थी। इसमें चार वस्तुओं की दुर्लभता बताई गई। इसमें सबसे पहले एक सच्चा इंसान बनने पर जोर दिया गया। सच्चा मनुष्य सच्चा साधु बनकर ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
आकृति के मनुष्य (बाहर) होने से कल्याण नहीं होगा। लेकिन प्रकृति (भीतर) का मानव बनने से ही हमारा कल्याण होगा। हमारे भारत देश में “मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव” के नारे हमारे घरों में गूंजते थे।
माता-पिता का आदर-बहुमान विशिष्ट स्तर का था। माता-पिता जिते जागते भगवान का दर्जा दिया गया है। लेकिन मैकोले शिक्षा पद्धति के प्रसार, पश्चिमी जीवन शैली के आकर्षण से मनुष्य स्वार्थी – कृतघ्नी और एकलपेटा हो गया है।
कुछ कपूत बच्चों ने गोद देने वाली मांँ को, कंधा देने वाले पिता को वृद्धाश्रम मैं डालने का पाप किया है। पत्नी पसंद से मिल सकती है लेकिन माता-पिता पुण्य से ही मिलते हैं। हमारा दुर्भाग्य है कि श्रवण, राम, क्रुणाल जैसे सैकड़ों मात पिताके भक्तों के इस देश में अनेक वृद्धाश्रम भरे पड़े हैं।
धर्म भले ही देरासर, उपाश्रय, मंदिर, किरजाधर, गुरुद्वार में ही किया जाए, लेकिन धर्म की सुगंध हमारी हर गतिविधि में दिखनी चाहिए। भले ही घर में परफ्यूम लगाया जाता है लेकिन उसकी खुशबू हर जगह महसूस होती है। 19 जून को सुबह 9 बजे भोर जैनसंध में विशेष व्याख्यान है।
