वडगांव शेरी के तत्वाधान में व्यक्त किये विचार
महाराष्ट्र न्यूज नेटवर्क
पुणे : ना तो वे दिव्य शक्ति है ना माया है और ना चमत्कार है। तीर्थंकर तो एक साधन है, कठोर तपस्या है। अहिंसा की जीवंत मूर्ति है। तीर्थंकर का पद वीराधन से नहीं मिलता, यह प्रसाद नहीं जो हर किसी में बांट दिया जाए। यह तो साधना से अर्जित पद है।
इस तह के विचार श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, वडगावशेरीमें आयोजित न्यान की बाते अपनोकी साथ इस कार्यक्रममे व्यक्त किये गये। इस कार्यक्रममे जैन धर्म की तत्व, जैन धर्म का इतिहास, के विषय पर मार्गदर्शन किया गया।
श्रमण संघीय जैन दिवाकरीय मालव सिंहनी श्री कमलावतीजी म. सा. की सुशिष्या प्रवर्तनी मेवाड गौरव डॉ. श्री चंदनाजी म. सा., महासती डॉ. अक्षय ज्योतिजी म. सा., तपकौमुदी साध्वी श्री उपासनाजी म. सा., श्रुत साधिका साध्वी श्री अक्षदाजी म. सा., नव दीक्षिता साध्वी श्री अदीतीजी म. सा. आदि ठाणा ६ का सानिध्य मिला। भगवान पार्श्वनाथ पद्मावती एकासने का सामूहिक अनुष्ठान कराया गया। जिसमें 400 के करीब भाई-बहन उपस्थित थे।
स्वाति भानावत के ९ उपवास के प्रत्याख्यान के लिये आयोजित कार्यक्रम में आशीष, अनुप बोरा की ओर से स्वागत किया गया। इस वक्त बोलते समय डॉ. अक्षय ज्योतिजी म. सा. ने कहा सूरज दूर रहकर भी अपनी करने से कमल को मिला दिया करता है वैसे ही तीर्थंकर रूपी सूर्य भी अपनी ज्ञान की किरणों से भक्तों के मन को खिला दिया करते हैं। तीर्थंकरों ने सारे जगत को जीवन जीने की कला सिखाई है।
24 तीर्थंकर में हम आज पार्श्वनाथ की चर्चा कर रहे हैं। वे 23 वे तीर्थंकर हैं। वह इतिहास पुरुष है। उन्होंने संघर्ष और उपसर्ग सही हैं। उन्होंने संघर्ष और उपसर्गों में जी कर भी आदर्श स्थापित किए हैं। सिद्धान्तों की रक्षा की है। कार्यक्रम का आयोजन श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, जैन युवा एवं बहु मंडल, वडगाव शेरी इनोहने किया।
