झवेरी रोड, मुलुंड (प.) : जैनसंध जिनालय में प्रवचन
महाराष्ट्र जैन वार्ता
मुलुंड (वे.) : “क्रोध करके कभी कोई सुखी नहीं हुआ, क्षमा रखकर कभी कोई दुःखी नहीं हुआ,” यह वचन पंडित राजरक्षित विजयजी ने श्री वासुपूज्य स्वामी जिनालय, झवेरी रोड, जैनसंध, मुलुंड (वे.) में अपने प्रवचन के दौरान कहे। उन्होंने बताया कि जीवन में सफलता और शांति पाने के लिए क्षमा धारण करना आवश्यक है।
पंडित राजरक्षित विजयजी ने कहा कि पारिवारिक ज्योतिषी जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली देखकर यह कहता है कि “यह वर्ष आपके जीवन का स्वर्णिम काल है। आप जो व्यापार करेंगे उसमें भारी लाभ होगा।
आप जो भी कार्य करेंगे, उसमें सफलता मिलेगी,” तो एक बुद्धिमान व्यक्ति क्या करेगा? क्या वह बाज़ार में जाकर व्यापार शुरू करेगा या घर जाकर सो जाएगा? उन्होंने समझाया कि बुद्धिमान व्यक्ति सतत परिश्रम और कठिन मेहनत से ही जीवन में सफलता प्राप्त करता है।
अनंत काल के बाद हमें मानव जन्म मिला है, आर्य देश की प्राप्ति हुई है, जिन शासन का आशीर्वाद मिला है, और शत्रुंजय तीर्थ की यात्रा करके भव्यता की छाप प्राप्त की है। यदि हम इन उपलब्धियों को छोड़कर इंद्रियों के तुच्छ भोगों में लिप्त हो जाएंगे और छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित होते रहेंगे, तो हमने जो महान उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, वे व्यर्थ हो जाएँगी।
इसके परिणामस्वरूप हमें अनेक जन्मों तक दुःख और दुर्भाग्य सहना पड़ेगा। पंडित राजरक्षित विजयजी ने आगे कहा कि “क्रोध अकेला आता है, लेकिन अपने साथ सब कुछ छीन ले जाता है।
वहीं, क्षमा अकेली आती है, लेकिन सब कुछ देकर चली जाती है।” भगवान महावीर स्वामी ने क्षमा का आश्रय लेकर अपने शत्रुओं को भी मित्र बना लिया। क्रोध करने के जितने कारण होते हैं, उतने ही क्षमा धारण करने के भी कारण हो सकते हैं।
जीवन में घटनाएँ अच्छी और बुरी दोनों हो सकती हैं। लेकिन यह हमारे हाथ में नहीं कि घटनाएँ कैसी होंगी, बल्कि यह हमारे हाथ में है कि हम उन्हें सकारात्मक रूप से लें या नकारात्मक रूप से।
राजरक्षित विजयजी ने कहा कि दुःख आना निश्चित है, लेकिन दुःखी रहना हमारी मानसिकता पर निर्भर करता है। भगवान राम को अयोध्या का राजा बनने के बजाय चौदह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा, फिर भी वे प्रसन्नचित्त रहे। “यदि परिस्थिति को बदला नहीं जा सकता, तो अपनी मानसिकता बदलना ही एक सुखी व्यक्ति की पहचान है।” – पं. राजरक्षित विजयजी
