महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : अनंत श्रद्धा और विश्वास रखकर हमें अंतिम क्षण तक प्रयासरत रहना चाहिए। हम जो प्रयास कर रहे हैं, उन पर हमारा अटूट विश्वास होना आवश्यक है। इस श्रद्धा को अमर बनाने का पर्व ही पर्युषण पर्व है, ऐसा प्रतिपादन प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया।
प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने कहा, “हमारे जीवन में श्रद्धा आती-जाती रहती है, भक्ति का भाव आता-जाता है, वैराग्य आता-जाता है; परंतु अच्छे भाव हमारे भीतर स्थायी रूप से बने रहें, इसके लिए ही पर्युषण पर्व का समय है।
पर्युषण पर्व हमारे मन में अच्छे बीज रोपण करने का अवसर है। इसलिए इस अवधि में हमें क्या फल प्राप्त होगा, उससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हमारे भीतर क्या अच्छे संस्कार अंकुरित हो रहे हैं। जिस कार्य के लिए हम पूर्व तैयारी नहीं करते, वह जीवन में आता और चला जाता है। पर्युषण पर्व भी आया और चला गया, ऐसा होने न दे।”
उन्होंने आगे कहा, “यदि किसी बात से मुझे क्रोध आता है तो आरंभ और अंत में भी वह क्रोध विद्यमान रहता है, इसलिए वह बीच में भी प्रकट होता रहता है। लेकिन यदि शुरुआत और अंत से क्रोध का अस्तित्व मिटा दिया जाए, तो किसी भी परिस्थिति में क्रोध उत्पन्न ही नहीं हो सकता।”
“जब तक हमें सिद्धि प्राप्त नहीं होती, तब तक प्रयास छोड़ना उचित नहीं है। हमें दृढ़ निश्चय के साथ सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए। अनेक लोग कोई कार्य आरंभ करते हैं, परंतु सिद्धि प्राप्त होने से पहले ही उसे छोड़ देते हैं।
सिद्धि का क्षण ही पूर्णता का क्षण होता है। जो व्यक्ति बीच में ही प्रयास छोड़ देते हैं, उनकी साधना व्यर्थ हो जाती है। महान पुरुषों ने अपने प्रयास अंतिम क्षण तक अधूरे नहीं छोड़े, तभी उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।
इसी प्रकार हमें पावनखिंडी में अंतिम क्षण तक प्राणों की बाजी लगाकर लड़े बाजीप्रभु देशपांडे का उदाहरण स्मरण में रखना चाहिए। जिन्होंने अंतिम क्षण तक श्रद्धा और प्रयास के साथ संघर्ष किया, उनका नाम इतिहास में अमर हुआ। उसी दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प इस पर्युषण पर्व के माध्यम से हम सभी को करना चाहिए।”
