महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : अक्सर हम बीती बातों पर ही सोचते रहते हैं, उन्हीं में रमते रहते हैं। यही भूतकाल हमें अपनी गर्त में खींच लेता है। ऐसा करने से भविष्य में हम क्या करेंगे, इसका विचार करने की क्षमता शेष नहीं रहती। भूतकाल में उलझने के बजाय भविष्य में क्या कर सकते हैं, यह सोचना अत्यंत आवश्यक है। भूतकाल के बंधन तोड़ पाने की क्षमता आनी चाहिए। इस प्रकार यदि हम अपना दृष्टिकोण बदल लें, तो यह सकारात्मक जीवन-यात्रा की ओर ले जाने वाला पहला कदम सिद्ध होगा, ऐसा प्रतिपादन प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया।
उन्होंने आगे कहा कि जब हमें कोई लक्ष्य प्राप्त करना होता है, उसमें निपुण होना होता है, तो उसके लिए नियमित अभ्यास आवश्यक है। यदि अभ्यास न हो, तो एक ही रात में हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते।
अभ्यास में निरंतरता भी आवश्यक है। अभ्यास के बिना कुशलता कैसे आएगी? यही बात ईश्वर-भक्ति पर भी लागू होती है। केवल एक दिन या एक रात में भक्ति करने से ईश्वर की प्राप्ति अथवा उनकी ऊर्जा हमें नहीं मिल सकती।
इसके लिए मन और शरीर में ईश्वर तथा उनके नाम-स्मरण का गहराई से समावेश होना चाहिए। यदि किसी सामान्य व्यक्ति के भाव निर्मल हों, श्रद्धा निष्कलंक हो और यह साधना नित्य रूप से की जाए, तो ईश्वर की ऊर्जा से वह असाधारण कार्यक्षमता सहज ही प्राप्त कर सकता है। किंतु इसके लिए निरंतर श्रद्धा और शुद्ध भाव आवश्यक हैं। जैसे भक्ति में निरंतरता चाहिए, वैसे ही ज्ञान में भी चाहिए।
उन्होंने कहा कि किसी विषय को आप एक दिन में जान तो सकते हैं, लेकिन उस विषय का गहन ज्ञान धीरे-धीरे ही आत्मसात होता है। सतही ज्ञान हमारे काम नहीं आता। जो ज्ञान गहराई से समझा जाता है, उसे व्यवहार में लाने के लिए भी नियमित अभ्यास आवश्यक है।
किसी भी कार्य का अभ्यास करते समय निरंतरता के साथ-साथ साधना और प्रशिक्षण की भी आवश्यकता होती है। तभी धीरे-धीरे शरीर, मन और इंद्रियाँ उसी अनुरूप ढलती हैं। केवल नकल कर लेने से कोई लाभ नहीं होता, उसके लिए योजनाबद्ध प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है और यह प्रशिक्षण देने के लिए गुरु का होना भी जरूरी है।
प्रवीणऋषिजी म. सा. ने आगे कहा कि किसी को अपने पंखों के नीचे रखकर निर्बल बनाने की बजाय उसे दुनिया का सामना करना सिखाना आवश्यक है। दूसरों के सहारे की बैसाखियों पर जीवन जीने के बजाय अपने पैरों पर चलना सीखना चाहिए। “यह मैं कर ही नहीं सकता” या “मुझे यह नहीं आता” जैसी शिकायतें करने के बजाय अपने दृष्टिकोण को बदलकर उसी दिशा में प्रयत्न करना चाहिए।
