महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जीवन में हमारा दृष्टिकोण और मानसिकता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। जैसी हमारी विचारधारा होगी, वैसा ही हमारा व्यक्तित्व और जीवन आकार लेता है। इसलिए अपना दृष्टिकोण, विचारधारा और मानसिकता सकारात्मक दिशा में बदलना बहुत आवश्यक है, ऐसा प्रतिपादन प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया।
उन्होंने कहा कि बाहरी वातावरण में अनेक अच्छे-बुरे प्रसंग घटित होते रहते हैं और उनके प्रभाव हमारे भीतर भी उतरते रहते हैं। ऐसे समय में हम स्वयं को किस प्रकार तैयार रखते हैं, यह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। जैसे हमारे विचार होंगे, वैसे ही विचार हम ग्रहण करेंगे और उसी से हमारी विचारधारा बनती जाएगी।
उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति को देखकर यदि मन में तिरस्कार या घृणा उत्पन्न होती है अथवा उसके प्रति प्रेम और श्रद्धा उत्पन्न होती है, तो यह हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। हम उस व्यक्ति को किस भावना से देखते हैं, उसी के आधार पर हमारी धारणा बनती है। जैसे भाव हमारे मन में होंगे, वैसे ही वे बाहर प्रकट होंगे।
एक साधारण उदाहरण लें — यदि हम भोजन करते समय क्रोध में अन्न ग्रहण करें और वही अन्न प्रेमपूर्वक, आनंद से ग्रहण करें, तो दोनों का हमारे शरीर और मन पर अलग-अलग प्रभाव पड़ेगा। पदार्थ वही रहता है, पर भावना बदलने से परिणाम भी बदल जाता है। इसका अर्थ यही है कि हमारी विचारधारा और मानसिकता का सीधा प्रभाव हमारे शरीर और मन पर पड़ता है।
बाहरी वातावरण से आने वाले विचारों को हम किस मानसिकता से स्वीकार करते हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है। यदि हमारे विचार ही दूषित हों, तो अच्छे विचार भी दूषित हो जाएंगे। लेकिन यदि हमारी विचारधारा निर्मल और सही हो, तो ग्रहण किए गए विचार भी सही दिशा में जाएंगे।
इसलिए आवश्यक है कि हमारी मानसिकता किसी भी बाहरी प्रभाव से दूषित न हो। अपने भीतर सकारात्मक परिवर्तन लाना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। हमें अपने मन को सही विचारों और सद्भावनाओं की दिशा देनी चाहिए। कठिन परिस्थिति या प्रतिकूल समय में भी मन की स्थिरता बनाए रखनी चाहिए।















