महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : हम भीतर से कैसे हैं, हम स्वयं क्या करते हैं और हमारे द्वारा कौन क्या करवाता है, इन तीन बातों पर हमारा जीवन निर्मित होता है। हम क्या करते हैं या हमारे द्वारा कौन क्या करवाता है, इसकी अपेक्षा हम भीतर से कैसे हैं, यह अधिक महत्त्वपूर्ण है। अर्थात हमारे विचारों की संरचना किस प्रकार से हुई है, इसी पर हमारा जीवन निर्भर करता है। ऐसा प्रतिपादन प. पू. प्रवीणऋषिजी म.सा. ने किया।
उन्होंने कहा कि हम जो क्रियाएँ करते हैं या हमारे द्वारा कोई और जो क्रियाएँ कराता है, वह सब बाहरी स्वरूप की बातें हैं; परन्तु भीतर से हम कैसे हैं, यह हमें स्वभावतः ही प्राप्त होता है। जो चीज़ हमें स्वभावतः प्राप्त होती है, उसका महत्व न जानकर हम प्रायः उसकी उपेक्षा करते हैं। किंतु हमारी विचारधारा, सोच और मानसिकता ही हमारी वास्तविक शक्ति है।
यही हमारा सामर्थ्य है। अतः इसे और सामर्थ्यवान बनाने का प्रयास करना चाहिए। मेरा जीवन मैं कैसे बनाऊँ, जीवन को किस दृष्टि से देखूँ – यह लक्ष्य हमारे सामने होना चाहिए। मेरे भीतर यह धारणा होनी चाहिए कि मुझे अपने आप को कुछ अच्छा बनाना है।
बाहरी वातावरण से मिलने वाली अच्छी शक्तियाँ, सकारात्मक ऊर्जा और उत्तम विचारों को ग्रहण करने की मानसिकता और विचारधारा हमें विकसित करनी चाहिए। मुझे जैसा बनना है, उसी स्वरूप का ज्ञान यदि मैंने ग्रहण किया और उसका स्वीकार किया, तो मैं वैसा ही बनूँगा।
यदि अपने मन को सदा शुभ चिंतन की आदत डाल दी जाए तो जीवन में भी शुभ घटनाएँ घटित होती हैं। इसका तात्पर्य यह है कि जिन बातों का हम समर्थन करते हैं, हमारी धारणा भी वैसी ही बनती है और उसी स्वरूप की घटनाएँ हमारे जीवन में घटित होती हैं।
जिस व्यक्ति पर आपकी श्रद्धा है, उस पर विश्वास रखकर यदि आप निश्चिंत हो गए, तो जीवन का अवश्य ही सार्थकता प्राप्त होगी। केवल जन्म लेना और यूँ ही जीवन व्यतीत कर देना उचित नहीं है। हर समय स्वयं को पहचानिए। उसे और अच्छा बनाने के लिए सचेत रूप से प्रयास कीजिए। अच्छी बातों को स्वीकार करने की क्षमता विकसित कीजिए।
मन, वचन और काया यदि एकत्र होकर किसी कार्य के लिए समर्थन देते हैं तो सफलता निश्चित मिलती है। इसलिए जो कुछ भी करना है उसमें श्रद्धा, आस्था और विश्वास होना आवश्यक है। तभी आपकी विचारधारा वैसी ही निर्मित होगी। इसके लिए मन, वचन और शरीर इन तीनों को एक रेखा में लाकर उनका संतुलन साधने का प्रयास कीजिए, तो जीवन का भी संतुलन अवश्य ही साधा जा सकेगा।















