महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : अपने मन का बोझ कम करना आवश्यक होता है। यदि मन को हल्का करना है, तो उसमें नई-नई चीज़ें भरने के बजाय, उसमें संचित बातों को एक-एक करके खाली करना चाहिए। तभी मन को मुक्त और हल्का किया जा सकता है, ऐसा प्रतिपादन प. पु. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया।
उन्होंने कहा कि संसार दो संकल्पनाओं पर आधारित है – आरंभ और परिग्रह। आरंभ का अर्थ है शुरुआत और परिग्रह का अर्थ है पकड़कर रखना। जीवन जीते समय हम एक-एक वस्तु इकट्ठा करते जाते हैं, पर जब वही वस्तुएँ बोझ लगने लगती हैं, तो उन्हें कम करने पर ही हमें हलकापन महसूस होता है।
ठीक यही स्थिति मन की भी होती है। मन में संचित बातें समय के साथ बोझ बन जाती हैं और दबाव उत्पन्न करती हैं। इसी प्रकार संसार में भी सुख की आसक्ति को त्यागना आवश्यक है। मोह, माया, राग, लोभ और ईर्ष्या ये तो केवल ऊपर से दिखने वाली बातें हैं, परंतु वास्तव में उनका मूल संसारिक सुख की आसक्ति ही है।
इसलिए जब हम किसी चीज़ की शुरुआत करते हैं, तो यह ध्यान रखना चाहिए कि उसका अंत भी निश्चित है। जहाँ आरंभ है, वहाँ अंत भी है। जैसे जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है। लेकिन जिसकी मृत्यु होती है, उसका पुनर्जन्म होना आवश्यक नहीं।
ऐसी मृत्यु को समाधि शरण कहा जाता है। मृत्यु के बाद सामान्यतः कुछ न कुछ पीछे छूट जाता है, किंतु समाधि शरण की अवस्था में कुछ भी शेष नहीं रहता, बल्कि सब कुछ प्राप्त हो जाता है। इसी कारण जब भी किसी नई चीज़ की शुरुआत करें, तो जागरूक रहना आवश्यक है।
क्योंकि शुरुआत करने का अर्थ है उसकी पूरी ज़िम्मेदारी उठाना। लेकिन यदि हमें स्थिरता, शाश्वतता – ध्रुव की तरह अचल स्थिति प्राप्त करनी है, तो हमें नए आरंभ का मार्ग त्यागना होगा। यदि अनादि और अनंत में प्रवेश करना है, तो पहले का मार्ग छोड़ना आवश्यक है।
इसके लिए हमें संयोग-मुक्त होना पड़ेगा। अर्थात नई शुरुआत नहीं करनी – यही समाधि शरण का मुख्य सूत्र है। पुनः जन्म न लेना ही समाधि का अर्थ है। परम समाधि का अर्थ है अनंत में विलीन हो जाना। इस जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने की इच्छा ही समाधि शरण कहलाती है।
