महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : प्रकृति में हर प्राणी को अनेक गुणों का वरदान मिला है। पहले मन-मन की भावनाएँ शब्दों के बिना ही समझी जाती थीं। लेकिन समय के साथ या फिर मनुष्य द्वारा किए गए बदलावों के कारण यह संवेदनशीलता कहीं न कहीं कम होती जा रही है। हमारे भीतर छिपा क्रोध और संशय का दानव हमेशा सिर उठाता रहता है। इस कारण हम जो भी करते हैं, उसके पीछे स्वार्थ छिपा होता है। जीवन जीते समय सादगी की भावना में अब अहंकार का प्रभाव दिखाई देने लगा है।
हमें इस स्वार्थ और अहंकार को पीछे छोड़कर यह निर्मल भावना जागृत करनी चाहिए कि “मैं जो भी करूँगा, वह ईश्वर के लिए करूँगा।” जिस क्षण आपके कदम ईश्वर की दृष्टि से चलेंगे, उस क्षण उनमें निश्चित रूप से ईश्वरीय शक्ति समाहित होगी।
जो हमें गढ़ रहा है, उसकी शक्ति हमेशा हमारे साथ रहती है। उस शक्ति को पहचानना और उससे जुड़े बंधन कभी टूटने न देना आवश्यक है। जीवन में सफलता का शिखर भले ही छू लें, लेकिन अपने पाँव हमेशा ज़मीन पर ही रहने दें।
अपने भीतर ईश्वर की झलक दिखाई देनी चाहिए। आत्मा का आत्मा से गहरा संबंध जुड़ना ज़रूरी है। उसमें संवेदनशीलता होनी चाहिए, एक-दूसरे को समझने की तैयारी होनी चाहिए। यदि कल को कोई व्यक्ति गलत मार्ग पर जाता दिखाई दे, तो उसे सही मार्ग पर लाने का प्रयास करना चाहिए।
आपके सद्विचार और सद्बुद्धि दृढ़ होंगे, तो आप न केवल अपना जीवन, बल्कि दूसरों का जीवन भी आकार दे पाएँगे। जब ईश्वर के प्रति भक्ति का बीज आपके अंतरमन में अंकुरित होता है, तो अपने आप विकारों से जुड़े संबंध छूट जाते हैं और धर्म से जुड़ा रिश्ता और गहरा होता जाता है।
