उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना — पुष्प दसवां
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : अगर मोमबत्ती को आग के पास रखा जाए तो वह पिघलने लगती है। उसी प्रकार जब स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के अत्यधिक निकट आते हैं, तो उनके भीतर कामाग्नि उत्पन्न होती है। इसका कारण यह है कि हम केवल उनके शरीर को देखते हैं, उनके भीतर स्थित आत्मा की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता। हम सिर्फ देह के आकर्षण में बंधे रहते हैं। क्योंकि हमारे भीतर ब्रह्मचर्य के संस्कार दृढ़ नहीं हुए हैं।
यदि तुम्हें तपश्चर्या करनी है, तो शरीर को सजाना नहीं, बल्कि उसे स्वच्छ और सुंदर रखना आवश्यक है। शरीर का अनावश्यक लाड-प्यार मत करो। आज शरीर को हम शोभा की वस्तु बना चुके हैं, यह उचित नहीं है।
आजकल किसी गाँव में एक बार ऐसा होता है कि वहाँ अस्पताल नहीं होता, लेकिन ब्युटी पार्लर जरूर होता है। यह क्या दर्शाता है? यह इस बात का संकेत है कि शरीर अब केवल दिखावे का साधन बन गया है।
शरीर सजाने के लिए नहीं, साधने के लिए मिला है। इसलिए तपश्चर्या की जो तैयारी करनी है, वह मन से करो। अपने आसपास का वातावरण शुद्ध रखो और आहार सात्विक रखो, क्योंकि आहार का सीधा प्रभाव शरीर और मन पर पड़ता है।
सूर्यास्त के बाद नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, इसलिए सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। आहार सीमित और संयमित रखें। अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए, वाणी में भी हिंसा न आने दें।
तुम्हें जिस मार्ग पर चलना है, वह मार्ग तुम्हें स्वयं चुनना होगा।
रास्ते में अनेक प्रलोभन और अधोगति की दिशाएँ दिखेंगी, परंतु उन पर ध्यान मत दो। तुम्हारा उद्देश्य स्वयं को जानना और आत्मबोध प्राप्त करना है – इसे सदा स्मरण में रखो।
