महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जब हम किसी संकल्पित कार्य को पूरा करने का प्रयास करते हैं, तब आने वाले संकटों को हमें स्वीकार करना चाहिए। कुछ बातों से हमें हमेशा दूरी बनाए रखनी चाहिए। जैसे सोशल मीडिया पर चल रही निरर्थक बातें, कषाय (क्रोध, अहंकार आदि), आहार, भय, मैथुन और परिग्रह के विषय। हमें दुःख को बार-बार मन में नहीं लाना चाहिए और प्रतिशोध की भावना भी मन में नहीं आने देनी चाहिए।
किस बात से दूर रहना है यह जानना जितना आवश्यक है, उतना ही यह समझना भी ज़रूरी है कि किन कार्यों को विवेकपूर्वक करना चाहिए। आहार, भय और परिग्रह। इन सब में भी विवेक का होना अत्यंत आवश्यक है।
पहले हम किसी वस्तु की ओर आकर्षित होते हैं, और फिर धीरे-धीरे वस्तुएँ हमें आकर्षित करने लगती हैं। जो व्यक्ति किसी वस्तु के प्रति आसक्ति रखे बिना उनका उपयोग करता है, वह न तो वस्तुओं की ओर आकर्षित होता है और न ही वस्तुएँ उसे आकर्षित कर पाती हैं।
हमारे मन में “पसंद और नापसंद” का द्वंद्व लगातार चलता रहता है, क्योंकि हमारे निर्णय विवेक के आधार पर नहीं होते। विवेक और अविवेक ही परमात्मा की दृष्टि में भाग्य और दुर्भाग्य हैं। और अंततः, यह सब कुछ हमारे अपने ही हाथ में होता है।















