महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : प्रभु शाश्वत हैं। प्रभु नित्य हैं। शरीर मात्र नश्वर है। जब शरीर का आकर्षण समाप्त हो जाता है, तब अन्य किसी वस्तु का आकर्षण नहीं रह जाता। जब भीतर का विवेक जागृत होता है, तब हम सर्वज्ञ और सर्वदर्शी बन जाते हैं। इंद्रभूति गौतम की भक्ति का अद्भुत उदाहरण हमें समझना चाहिए।
मोह में स्वार्थ होता है, जबकि भक्ति में समर्पण होता है। तपस्या और साधना से अपने शरीर को तैयार करना पड़ता है। प्रत्येक अध्याय भक्ति-शक्ति का एक ऊर्जा स्रोत है। प्रभु का वचन स्वयं प्रभु के समान है।
जो इस गाथा का अध्ययन और वाचन करते हैं, उनके जीवन में जिनशासन की कृपादृष्टि का वर्षा होता है। प्रभु के वचन से अधिक मंगलकारी इस संसार में कुछ नहीं। जो उसे सुनता है, वह निर्मल और क्लेशमुक्त हो जाता है। उसे केवल ज्ञान ही नहीं मिलता, बल्कि उसकी समझ तीव्र हो जाती है, आकलन शीघ्र होने लगता है।
इसलिए परिवार के सभी सदस्यों को सामूहिक रूप से गाथा का वाचन करना चाहिए। जीवन में क्या बनना है, यह आपको स्वयं तय करना है। जो परमात्मा से जुड़ जाता है, उसकी दिशा कभी नहीं भटकती।
इसलिए प्रभु के वचन को सुनिए और उनसे जुड़ जाइए। वंदन करना है तो केवल प्रभु को कीजिए, क्योंकि अन्य कोई आपको गलत दिशा में ले जा सकता है, परंतु जीवन में सही मार्ग और दिशा केवल प्रभु ही दिखा सकते हैं।

 
			

















