आदिनाथ सोसायाटी जैनसंध में गुरुदशमी पर्व महोत्सव का शुभारंभ
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जो अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाए वो सद्गुरु होता हें इस प्रकार के विचार पं. राजरक्षितविजयजीने व्यक्त किया।
युगप्रधान आचार्य सम पंन्यास प्रवर श्री चन्द्रशेखरविजयजी की 13 वीं स्वर्गारोहण तिथि के अवसर पर श्री आदिनाथ सोसायाटी जैनसंध पुणे में तीन दिवसीय गुरुदशमी पर्व महोत्सव का शुभारंभ हुआ। लाभार्थी परिवार भूतपूर्व तपोवनी- पूना- डिसा के युवाओं ने दीप प्रगटाकर मंगल किया।
इस अवसर पर गुरुमा के संसारी भाई-भाभी जयोत्सनाबेन नलिनभाई दलाल परिवार ने गुरुमा को वंदना किया। पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि अंधकारका अंधेरा अमावस की रात के अंधेरे से भी ज्यादा खतरनाक होता है।
जिस प्रकार रात के अंधेरे में लाल-पीले धुले हुए कपड़े काले दिखते हैं, उसी प्रकार अज्ञान के अंधकार में फंसे व्यक्ति को सत्य मे असत्य का और असत्य मे सत्य का भ्रम होता है। सद्गुरु शिष्य के भ्रम को तोड़कर संसार के परिभ्रमण को रोकते हैं। गुरु का अर्थ है शिष्य को अज्ञान के अंधकार से सम्यकत्व के प्रकाश की ओर ले जाना।
यदि गाड़ी चलाने वाला ड्रायवर, विमान उड़ाने वाला पायलट और रथ का सारथी बराबर हो तो यात्रीक की यात्रा शांतिपूर्ण होगी। उसी प्रकार यदि शिष्य को सच्चा गुरु मिल जाए तो जीवन का रथ मोक्ष के मार्ग की ओर निर्बाध गति से दौड़ने लगता है।
पं. चंद्रशेखरविजयजी का जन्म मुंबई के एक धनी और सुसंस्कृत परिवार रावबहादुर जीवतलाल प्रताप दलाल के घर इंद्रवदन के रूप में हुआ था। गीता में वर्णित योगभ्रष्टता की विशेषता के अनुसार करुणा, पापभीरुता, आचार चुस्ता आदि अनेक सद्गुण सुन्दरतापूर्वक प्रस्फुटित हुए।
सिद्धांत महोदधि सूरि प्रेम का वात्सल्य और वर्धमान तपोनिधि आ. भुवनभानु सूरिजी के वैराग्य भरपूर प्रवचनों ने संयम की भावना जागृत हूइ। कड़ी मेहनत के बाद भायखला मुंबई मे दीक्षा हुई। मुनि चन्द्रशेखरविजय बने। भक्ति, मैत्री, शुद्धि की त्रिवेणी संगम से शौर्य पुरुष बने। 14 अगस्त को सुबह 7:15 को संगीत-सजावट के साथ गुरुमा मिलन का कार्यक्रम है।