श्री आदिनाथ सोसायटी जैनसंध में किया मार्गदर्शन
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : कटु और कर्कश वचनों को नजरअंदाज करें और हितकारी वचनों को जीवन में अपनाने का प्रयास करें, तभी हमें मन की शांति मिल सकती है। इसके लिए हमें निरंतर प्रयास करना आवश्यक है। इस प्रकार के विचार पं. राजरक्षितविजयजी ने अपने प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
श्री आदिनाथ सो. जैनसंघ, पुणे में पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि यदि कोई हमारे घर पर जलती हुई लकड़ी फेंके, तो हम उसे बुझाने के लिए पानी छिड़केंगे या पेट्रोल? जब कोई हम पर आग की तरह क्रोधित होता है, तो हमें निर्णय करना होता है कि हम उस पर क्षमा का पानी छिड़कें या क्रोध का पेट्रोल। यह निर्णय हमारे ही हाथ में है।
कोई व्यक्ति हमारा जितना बिगाड़ सकता है, उससे कहीं अधिक हम स्वयं अपना नुकसान कर लेते हैं। हममें से कई लोग सप्ताह के छह दिन बबूल बोने में बिताते हैं, और फिर सातवें दिन मंदिर जाकर प्रार्थना करते हैं कि कांटों की फसल निष्फल हो जाए।
बाग से दुश्मनी करने का नुकसान बाग को नहीं, बल्कि हमें होता है। उसी प्रकार, किसी भी धार्मिक प्रवृत्ति से अरुचि उत्पन्न करने से धर्म को नहीं, बल्कि हमारी आत्मा को हानि पहुँचती है।किसी भी बुरे प्रसंग में क्षमा रखना या गुस्सा करना हमारे हाथ में है।
सीढ़ी का उपयोग ऊपर जाने के लिए हो सकता है या नीचे जाने के लिए, यह हमारे उपयोग पर निर्भर करता है। यदि एक व्यापारी ने हम पर गुस्सा किया, और शांत रहने के बजाय हमने भी गुस्सा किया, तो मामला बढ़ गया। इससे हमारा रक्तचाप बढ़ा, दिल का दौरा पड़ा, और हमें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
बायपास सर्जरी के लिए डॉक्टरों ने हमें मजबूर किया। इससे हमारी संपत्ति और स्वास्थ्य को बहुत हानि हुई। अब सोचिए, क्या बायपास सर्जरी व्यापारी के बुरे व्यवहार के कारण हुई, या मेरे गुस्से के कारण? यदि व्यापारी के गुस्से के सामने क्षमा की भूमिका निभाई होती, तो इतनी शारीरिक और मानसिक हानि नहीं होती।
एक कटोरा विष का है और दूसरा अमृत का। किसे नजरअंदाज करना है और किसे अपनाना है, यह हमारे हाथ में है। कटु और कर्कश वचनों को नजरअंदाज करें और हितकारी वचनों को जीवन में अपनाने का प्रयास करें। इस तरह हमारा जीवन सफल हो जाएगा।
