महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : श्री हाइड पार्क टेम्पल ट्रस्ट में पं. राजरक्षितविजयजी ने अपने प्रवचन में जीवन में क्षमा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि क्रोध चाहे कितना भी प्रचंड हो, वह क्षमा के आगे हार जाता है। उन्होंने भगवान पार्श्वनाथ के समता गुण को जीवन में अपनाने का संदेश दिया।
पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि पार्श्वनाथ प्रभु का स्वभाव विकारों को दूर करता है। संसार रूपी सागर को पार करने के लिए समता रूपी स्टीमर का सहारा लेना चाहिए। पार्श्वनाथ प्रभु ने कमठदेव के उपसर्गों और धरणेन्द्र के सहयोग को समान दृष्टि से देखा।
उन्होंने बताया कि इंसान बुरा नहीं होता, बल्कि इंसान के अंदर दोष बुरे होते हैं। गुण प्राप्ति के लिए गुण दृष्टि विकसित करनी चाहिए। दूसरों के छोटे-छोटे गुण देखने के लिए दूरबीन और अपने दोष देखने के लिए दर्पण का उपयोग करें।
पं. राजरक्षितविजयजी ने महाभारत के उदाहरण का उल्लेख करते हुए कहा कि जब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर और दुर्योधन को हस्तिनापुर के सज्जन और दुर्जन लोगों को खोजने के लिए भेजा, तो युधिष्ठिर को कोई दुर्जन नहीं मिला, जबकि दुर्योधन को कोई सज्जन नहीं मिला। यह उनके दृष्टिकोण का परिणाम था।
उन्होंने कहा कि क्रोध की चिंगारी को बुझाने के लिए हमें क्षमा का जल बनना चाहिए, न कि पेट्रोल का टैंक। आग चाहे कितनी भी भयानक क्यों न हो, पानी से हार जाती है। उसी प्रकार, क्रोध क्षमा के आगे झुक जाता है।
पं. राजरक्षितविजयजी ने अपने प्रवचन के अंत में कहा कि क्रोध से कभी कोई सफल नहीं हुआ, लेकिन क्षमा से कभी कोई पराजित नहीं हुआ। इसी कारण “क्षमा वीरस्य भूषणम्” कहा गया है।
