महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : अपने भीतर की सुप्त शक्तियों को जागृत कीजिए। ‘मैं कर सकता हूँ’, ऐसा आत्मविश्वास रखिए और अपने परिवार के सदस्यों सहित दूसरों पर विश्वास करना सीखिए,” ऐसा प्रेरणादायी आवाहन प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया। परिवर्तन चातुर्मास 2025 के अंतर्गत आज के प्रवचन में उन्होंने इस एक सूत्र पर विस्तार से प्रकाश डाला। वे बोले, “कभी यह मत कहिए कि मैं यह नहीं कर सकता। बल्कि उन चीज़ों की सूची बनाइए जिन्हें आप कर सकते हैं। यह संकल्प लीजिए कि मैं किसी के लिए भी बुरा नहीं सोचूंगा। अपने परिवार के सदस्यों के लिए कभी भी अपशब्दों का प्रयोग मत कीजिए।”
उन्होंने हनुमानजी और जांबुवंत का उदाहरण देते हुए कहा, “जैसे जांबुवंत ने हनुमानजी को लंका की ओर उड़ान भरने की प्रेरणा दी थी, वैसे ही हमें भी अपने अंदर की सुप्त शक्तियों को जगाना चाहिए।” प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने आगे कहा, “अक्सर माता-पिता अपने ही बच्चों के शत्रु जैसे व्यवहार करते हैं।
जब बच्चा कुछ नया करने की कोशिश करता है तो वे कहते हैं – ‘तुझसे नहीं होगा।’ ऐसे में वह बच्चा सफल कैसे होगा? जब थॉमस एडीसन को पढ़ाई में रुचि न होने के कारण स्कूल से निकाल दिया गया और स्कूल ने उसकी माँ को पत्र दिया, तो एडीसन ने माँ से पूछा कि पत्र में क्या लिखा है।
तब माँ ने कहा, ‘तुम इतने प्रतिभाशाली हो कि यह स्कूल तुम्हें सिखा नहीं सकता।’ और उसी एडीसन ने आगे चलकर दुनिया में सबसे ज़्यादा आविष्कार किए।” उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “कभी भी अपने बच्चों को यह मत कहिए कि तुम यह नहीं कर सकते।
और यह बात खुद को भी कभी मत कहिए। ‘असंभव भी संभव है’ यही सच्चे विश्वास का अर्थ है। इसलिए पहले स्वयं पर विश्वास कीजिए और दूसरों पर अविश्वास मत रखिए। जब आप इस सूत्र का पालन करेंगे, तब आपको लगेगा कि जो बातें पहले असंभव लगती थीं, वे भी आप कर सकते हैं।”
आगे बोलते हुए उन्होंने कहा, “हमने दो घंटे में सवा करोड़ नवकार मंत्र का जाप करने का लक्ष्य रखा है। आज भले ही यह असंभव लगे, लेकिन सात हजार पुणेकर परिवार मिलकर इसे संभव कर दिखाएंगे। उस ध्वनि तरंग से जो शक्ति उत्पन्न होगी, वह अत्यंत अद्भुत होगी और वह शक्ति हमारे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाएगी।”
