महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : श्री जैन सामुदायिक उत्सव समिति द्वारा तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामीजी का 2624वां जन्म कल्याणक महोत्सव अत्यंत भव्यता और श्रद्धा के साथ मनाया गया। इस अवसर पर आयोजित “भक्तामर की अमर कथा” नामक नृत्य-नाटिका कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रही, जिसे श्री आदिनाथ भक्तामर हीलिंग सेंटर, पुणे द्वारा प्रस्तुत किया गया।
यह नृत्य नाटिका आचार्य भगवंत मांगतुंग सूरीश्वरजी म.सा. द्वारा रचित भक्तामर स्तोत्र पर आधारित थी। नाटिका के प्रथम भाग में प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री वृषभदेव की जन्मकथा और मानव कल्याण के लिए किए गए उनके कार्यों का प्रभावशाली चित्रण किया गया।
विवाह संस्था की स्थापना, कर्म के महत्व की शिक्षा और अंततः राज्य का त्याग कर समाज प्रबोधन के लिए निकले वृषभदेव जी की प्रेरणादायक गाथा ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। नाटिका के द्वितीय भाग में भक्तामर स्तोत्र के सूत्रों की वर्तमान सामाजिक समस्याओं के संदर्भ में प्रासंगिकता दर्शाई गई।
सूत्र क्रमांक 20, 26 और 29 को अलग-अलग प्रसंगों द्वारा जीवंत किया गया। इस भव्य प्रस्तुति में 100 से अधिक कलाकारों ने भाग लिया। इसका संयोजन सीमा सेठिया, सुजाता शिंगवी और स्नेहल चोरडिया ने किया, जबकि लेखन और निर्देशन मनाली मुनोत (इचलकरंजी) द्वारा हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत 8 वर्षीय गायक निवान ओसवाल द्वारा प्रस्तुत भक्तिगीत और नवकार मंत्र से हुई। दीपप्रज्वलन का कार्य अचलचंद जैन, देविचंद जैन, राजेश शहा, विजयकांत कोठारी, विजय भंडारी, महावीर कटारिया, सतीश चोपड़ा, हरेश शाह, अनिल गेलडा, संपत जैन, समीर जैन, सतीश शाह आदि गणमान्य व्यक्तियों द्वारा संपन्न हुआ।
महावीर जयंती पर निकाली गई शोभायात्रा में भाग लेने वाले विविध मंडलों को विशेष झांकियों के लिए पारितोषिक प्रदान किए गए। प्रसिद्ध छायाचित्रकार सुशील राठौड़, अरिहंत ग्रुप और जय आनंद विहार सेवा ग्रुप को सेवा स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
अरिहंत जागृति मंच द्वारा ‘जैन धर्म’ पुस्तिका और ‘महाराष्ट्र जैन वार्ता’ पत्रिका का विमोचन भी मान्यवरों के करकमलों से संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन सतीश शाह और अनिल गेलडा ने किया, जबकि प्रास्ताविक अचलचंद जैन ने दिया।
कार्यक्रम के अंत में भगवान वृषभदेव की भव्य महाआरती की गई, जिसमें 10,000 से अधिक श्रद्धालु भाविक उपस्थित थे। कार्यक्रम की समापन दीपारती हजारों दीपों की ज्योति से हुई, जिसने वातावरण को भक्तिरस में सराबोर कर दिया।
“जैन संस्कृति की गहराई और भगवान के संदेशों को कला और नाट्य के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है। ‘भक्तामर की अमर कथा’ के माध्यम से हमने यही प्रयास किया है।” – प्रकाश धारिवाल
“यह आयोजन सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिक मूल्यों का उत्सव है। इतनी विशाल संख्या में समाजजनों की उपस्थिति ने इसे ऐतिहासिक बना दिया।” – अचल जैन
